कर्तव्य प्रमुख है या उपलब्धि ...

मेरा स्पष्ट मानना है कि किसी राष्ट्र के निर्माता शिक्षक ही होते हैं। किसी राष्ट्र का चरित्र और उसकी उन्नति उसके शिक्षकों में ही निहित है। मैं अब तक विभिन्न संस्थानों-समारोहों में दो लाख से अधिक विद्यार्थियों और शिक्षकों से मिल चुका हूँ। इस अनुभव से मैंने महसूस किया कि शिक्षकों के लिए 11 ऐसे महत्वपूर्ण मुद्दे हैं जिन्हें पूरा करने के लिए उन्हें शपथ ग्रहण करनी चाहिए। मेरे अनुसार शिक्षक को अपने विद्यार्थियों के विकास, उनकी प्रतिभा को पहचानने और उन्हें दिन प्रतिदिन निखारने के प्रयास करने चाहिए। उन्हें बेहतर बनाकर ही शिक्षक समाज या राष्ट्र को अपना बेहतर योगदान दे सकते हैं । एक उदाहरण के माध्यम से समझाता हूं कि किसी शिक्षक को अपने विद्यार्थियों के विकास के प्रति किस तरह से अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए। वर्ष 1954 में पहली बार आयोजित हुए भारत रत्न पुरस्कार समारोह में पुरस्कार के लिए डॉ. सी.वी. रमन को भी चुना गया था। समारोह राष्ट्रपति भवन में तत्कालीन राष्ट्रपति राजेन्द्र प्रसाद की अध्यक्षता में होना था। डॉ. रमन ने बड़ी विनम्रता के साथ राष्ट्रपति को पत्र लिखकर समारोह में शामिल नहीं हो पाने के बारे में बताया। उन्होंने इसके पीछे जो कारण बताया वह बहुत ही पवित्र और प्रेरक है। उन्होंने बताया था कि उनके निर्देशन में एक विद्यार्थी शोध कार्य (पीएचडी) कर रहा था। उसका शोध उन्हीं दिनों पूरा होना था, अत: वे उसे छोड़कर दिल्ली समारोह में भाग लेने नहीं जा सकते थे। आज जरूरत है कि ऐसे शिक्षकों की, जो अपनी उपलब्धियों को भी विद्यार्थियों को मार्गदर्शन देने के अपने कर्त्तव्य से छोटा ही मानें । शिक्षकों को अपने विद्यार्थियों के विकास के लिए खुद को भुलाना ही होगा। मेरे जीवन पर भी ऐसे कई शिक्षकों का प्रभाव रहा है, जिन्होंने अपना सब कुछ भुलाकर विद्यार्थियों (जिनमें मैं भी था) के जीवन का निर्माण किया। उम्र के शुरुआती वर्षों में रामेश्वरम् पंचायत प्राथमिक स्कूल में मुथु अय्यर मेरे शिक्षक थे, जिन्होंने मेरे व्यक्तित्व को आकार दिया। उन्होंने मुझमें कई पवित्र आदतें विकसित की, जिनके कारण मैं ऐसा बन पाया। मुझे सेंट जोसेफ कॉलेज में गणित पढ़ाने वाले प्रो. थोथात्री आयंगर में दिव्य स्वरूप दिखाई देता था। वे जब कभी भी घूमते-फिरते हम लोगों से बात करते तो उनके चारों ओर ज्ञान का घेरा दिखाई देता था। उन्होंने मुझे गणित की एक-एक बारीकी को समझाया-सिखाया था। इसी तरह अंतरिक्ष विज्ञान में मेरे शोध कार्य के निर्देशक प्रो. श्रीनिवासन ने भी मेरे व्यक्तित्व और चरित्र को गढ़ने में खुद के अस्तित्व को भुलाया है।


सब कुछ शिक्षक के हाथ में


विद्यार्थियों की क्षमताओं का विकास, विद्यार्थियों की जिज्ञासु प्रवृत्ति और शोधात्मक वृत्ति का विकास, रचनात्मकता और आविष्कारक सोच का निर्माण, विद्यार्थियों में नवीन तकनीकी के उपयोग का संचार, टेली शिक्षण व्यवस्था का विकास, आधुनिक संचार व सम्पर्क के साधनों का प्रयोग, व्याख्यान, प्रयोगशाला और पुस्तकालय के माध्यम से गुणवत्ता का विकास, विद्यार्थियों में उद्यमिता का विकास, नैतिकतापूर्ण नेतृत्व विकसित किया जाए।


शिक्षकों के लिए शपथ



  • शिक्षण मेरा प्यार, मेरी आत्मा है।

  • विद्यार्थियों का विकास ही मेरा ध्येय है।

  • मैं औसत विद्यार्थियों को भी महानता की ओर अग्रसर करूंगा।

  • मेरा विद्यार्थियों के प्रति व्यवहार हमेशा सहृदयतापूर्ण रहेगा।

  • मेरा जीवन और आचरण विद्यार्थियों के लिए संदेश बनेगा।

  • 'मैं विद्यार्थियों को प्रबुद्ध नागरिक बनाऊँगा।

  • मैं विद्यार्थियों के साथ धर्म, समुदाय, भाषा के नाम पर कोई भेदभाव नहीं करूंगा।

  • मैं निरंतर स्वयं का विकास करूंगा। मैं अपने विद्यार्थियों की सफलता पर जश्न मनाऊँगा।

  • मैं देश के विकास के लिए। महत्वपूर्ण योगदान दूंगा।

  • 'मैं अपने दिमाग में महान विचार भरूंगा और अपने विचारों व कार्यों में सदैव पवित्रता रखूगा।


स्मृतिशेष ए.पी.जे. अब्दुल कलाम